Friday, August 31, 2012

ये आँख कितनी अमीर है

अश्क बहकर भी कम नहीं होते
ये आँख कितनी अमीर है,
इन हवाओं को कुछ कहा भी नहीं, खुशबू फैल गयी
ये मैं नहीं, पागल समीर है.

दर्द कुतरता है मेरे अंतर को
कागज की नाव अब पुरानी है
बह गयी है बस्ती वज़ूद की इस बारिश में
बची है जो अब, कहानी है.

तस्वीर कल की उलझी-सी है, धुंधली है
दरख़्त खामोश है, रात गहरी है,
हुआ जो कल था वादा हौसले से
आज कोने में, वो भी चित्त पसरी है.

समेट लाता हूँ जीवन के बिखरे पन्नों को
उसी चादर में, जो आज मैली है
शब्द छोटे हैं, बात बड़ी है दुनिया की
खामोशी-सी, भावों की तरह, दूर तक फैली है.
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

3 comments:

  1. मान्यवर ये आँख कितनी अमीर है शीर्षक के माध्यम से आपकी अभिव्यक्ति अंत:करण को झकझोरती है वह तो केवल सहृदय ही समझ सकता है हम केवल यह कहना चाहतें है कि- आप वह पारस पत्थर हैं जिसे छूलें वह सोने मे बदल जाएगी ।

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    1. Dear Trivedi
      I appreciate your words and a sense of understanding the abrupt emotions.....

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  2. Aap ke ye udgaar yaad dilate hain-
    Jaane Kis Kadar Aanshoo Abhi baki hai in Ankhon mein
    Ki Yaad teri Jab bhi Aati hai Chhasme Foot padte Hai.

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M K Mishra