Friday, April 24, 2015

तलाश

कल जिनके हाथ में मैं फूल देकर आया था
उन्हीं के हाथ से एक शूल की मैं तलाश में हूँ ।

कल जिनके साथ मैं चुपचाप चलकर आया था
उन्हीं के निगाह की एक भूल की मैं तलाश में हूँ ।

इस मुस्कराते चाँद को ढूढो न अपनी चादर में
उसी के हाथ से एक लौ की मैं तलाश में हूँ ।

कल जिनके घर में मैं एक बूँद देकर आया था
उन्हीं के हाथ से सैलाब की मैं तलाश में हूँ ।

टूटे साज का राग मुझे अब भी बहुत रुलाता है
उन्हीं के साज की मृदुल एक राग की मैं तलाश में हूँ ।

जंग लड़ लिया है खुद की जिंदगी से बहुत मैंने
उन्हीं के हाथ से एक दुआ की मैं तलाश में हूँ ।

ख्वाहिश फकत है बाकी कि जिस दर्द को जिया मिलकर
उन्हीं के पाक--रूह की मैं आज भी तलाश में हूँ 
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

4 comments:

  1. sir its really a good one. but i feel some typing errors are there.. like i request u to verify #line8 and #line11. :) rest the lines are really worth pondering upon :)

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    1. Thank you Shakshi for staying on this blog for quite some time. I extend my greatfulness. Errors corrected.

      Stay blessed.........

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  2. सलीके से जो हवाओं मे खुशबू घोल सकते हैं,
    अभी कुछ लोग बाकी हैं, जो हिन्दी बोल सकते हैं ॥

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M K Mishra