कल जिनके
हाथ में मैं फूल देकर आया था
उन्हीं
के हाथ से एक शूल की मैं तलाश में हूँ ।
कल जिनके
साथ मैं चुपचाप चलकर आया था
उन्हीं
के निगाह की एक भूल की मैं तलाश में हूँ ।
इस मुस्कराते
चाँद को ढूढो न अपनी चादर में
उसी के
हाथ से एक लौ की मैं तलाश में हूँ ।
कल जिनके
घर में मैं एक बूँद देकर आया था
उन्हीं
के हाथ से सैलाब की मैं तलाश में हूँ ।
टूटे साज
का राग मुझे अब भी बहुत रुलाता है
उन्हीं के साज की मृदुल एक राग की मैं तलाश में हूँ ।
जंग लड़
लिया है खुद की जिंदगी से बहुत मैंने
उन्हीं
के हाथ से एक दुआ की मैं तलाश में हूँ ।
ख्वाहिश फकत है बाकी कि जिस दर्द को जिया मिलकर
उन्हीं
के पाक-ए-रूह की मैं आज भी तलाश में हूँ ।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
sir its really a good one. but i feel some typing errors are there.. like i request u to verify #line8 and #line11. :) rest the lines are really worth pondering upon :)
ReplyDeleteThank you Shakshi for staying on this blog for quite some time. I extend my greatfulness. Errors corrected.
DeleteStay blessed.........
सलीके से जो हवाओं मे खुशबू घोल सकते हैं,
ReplyDeleteअभी कुछ लोग बाकी हैं, जो हिन्दी बोल सकते हैं ॥
Dua hai talaash poori ho...
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