Friday, February 05, 2016

सरकती जिंदगी कहाँ पटकेगी अब नहीं मालूम

किस-किस नगर की राह से गुजरा हूँ तेरी तलाश में
इल्म कहाँ था कि मेरी साख-ए-किस्मत ऐसी होगी !

बिखरी फलक की चादरें यहाँ से धुंधली दिखती हैं
एक शम्मा तो जलाओ कि जमीं ही रोशन हो जाए !

आसमान के कतरों में आज धरती-सी बड़ी दरारें हैं
सूरज भी छुप के आदमी का घाव सहलाता रहा !

करें इनायत किसकी यहाँ, हर सख्श नशे में धुत्त है
खुद में खुदा मशरूफ है, हम फिक्र किसकी करें यहाँ !

जुबाँ चुप है, नजरें खामोश हैं, औ' बंदिशें नूर हो गयीं
हम कहें तो क्या कहें, अब सितारे ही बात करते हैं  !

तुम हो तो हम हैं, हम नहीं होते तो अच्छा था
परदे में  रह नहीं  सकते, अगर होते तो अच्छा था !

कसम इस होने का बयां मय्यसर भी नहीं होता
बहुत कुछ बोलने की भी कोई सजा होती तो अच्छा था  !

सरकती जिंदगी कहाँ पटकेगी अब नहीं मालूम
न हो मालूम तो अच्छा है, पता होता तो मुश्किल था !

चलो एक राग गाते हैं अब दुनियां को हँसाने का
वो भी हँसते, मैं भी हँसता, सब हँसते तो अच्छा था !
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

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M K Mishra