Thursday, September 10, 2015

चल देख दुनिया का तमाशा


जिंदगी की राह जब हो जाए गर कभी कठिन
तो टूटते तारों में फिर से कोई रंग ढूंढीए

राह किसी मोड़ पर जब अर्थ बदलने लगे
पत्थर  फेंको भंवर में कि डूब जाएँगे

जिंदगी जिस दिन मुझे चौराहे पर सोयी मिली
हाथ का मशाल तब से और तेज जल गया

दस्तक हुई या तीर चला ये तो बताइए
आपके रहमत पे जियें और करीब आइए

कितने हादसों से गुजरता हूँ रोजकह नहीं सकता
आपका बस एक हादसा हौसला पस्त करेगा क्या

अजनवी आँखें निहारती हैं गोया मैं बच्चा हूँ
सबकी दस्तुरें अच्छी हैंमैं ही केवल कच्चा हूँ

कई हिस्सों में बँटी हैं साँसें, कुछ गीली कुछ सूखी हैं
कभी पलक पर बूँदें हैं और कभी आँख भी रुखी हैं

हया गयीशरम गयीगया आँख का पानी
रेल के डिब्बे भी कहते रोज बेहया कहानी

सड़क की नाव इधर नाली में अब डूबी पड़ी है
और आदमी फ़िक्रमंद हैअपनी गली के भाव में 

चल देख दुनिया का तमाशा आजा मेरे संग-संग
यहाँ झोपड़ी वहाँ महल हैसभी जी रहे तंग-तंग
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा