जिंदगी की राह जब हो जाए गर कभी कठिन
तो टूटते तारों में फिर से कोई रंग ढूंढीए
राह किसी मोड़ पर जब अर्थ बदलने लगे
पत्थर न फेंको भंवर में कि डूब जाएँगे
जिंदगी जिस दिन मुझे चौराहे पर सोयी मिली
हाथ का मशाल तब से और तेज जल गया
दस्तक हुई या तीर चला ये तो बताइए
आपके रहमत पे जियें और करीब आइए
कितने हादसों से गुजरता हूँ रोज, कह नहीं सकता
आपका बस एक हादसा हौसला पस्त करेगा क्या
आपका बस एक हादसा हौसला पस्त करेगा क्या
अजनवी आँखें निहारती हैं गोया मैं बच्चा हूँ
सबकी दस्तुरें अच्छी हैं, मैं ही केवल कच्चा हूँ
सबकी दस्तुरें अच्छी हैं, मैं ही केवल कच्चा हूँ
कई हिस्सों में बँटी हैं साँसें, कुछ गीली
कुछ सूखी हैं
कभी पलक पर बूँदें हैं और कभी आँख भी रुखी
हैं
हया गयी, शरम गयी, गया आँख का पानी
रेल के डिब्बे भी कहते रोज बेहया कहानी
सड़क की नाव इधर नाली में अब डूबी पड़ी है
और आदमी फ़िक्रमंद है, अपनी गली के भाव में
चल देख दुनिया का तमाशा आजा मेरे संग-संग
यहाँ झोपड़ी वहाँ महल है, सभी जी रहे तंग-तंग
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
यहाँ झोपड़ी वहाँ महल है, सभी जी रहे तंग-तंग
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M K Mishra