कल जिनके
हाथ में मैं फूल देकर आया था
उन्हीं
के हाथ से एक शूल की मैं तलाश में हूँ ।
कल जिनके
साथ मैं चुपचाप चलकर आया था
उन्हीं
के निगाह की एक भूल की मैं तलाश में हूँ ।
इस मुस्कराते
चाँद को ढूढो न अपनी चादर में
उसी के
हाथ से एक लौ की मैं तलाश में हूँ ।
कल जिनके
घर में मैं एक बूँद देकर आया था
उन्हीं
के हाथ से सैलाब की मैं तलाश में हूँ ।
टूटे साज
का राग मुझे अब भी बहुत रुलाता है
उन्हीं के साज की मृदुल एक राग की मैं तलाश में हूँ ।
जंग लड़
लिया है खुद की जिंदगी से बहुत मैंने
उन्हीं
के हाथ से एक दुआ की मैं तलाश में हूँ ।
ख्वाहिश फकत है बाकी कि जिस दर्द को जिया मिलकर
उन्हीं
के पाक-ए-रूह की मैं आज भी तलाश में हूँ ।
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा