जीवन अतृप्त से शुरू होकर अतृप्त पर ही समाप्त हो जाने वाली वृक्ष गाथा है। कहाँ से शुरू होकर कहाँ खत्म होगी इसका भान तक नहीं हो पाता।
अगर हुआ भी, तब तक काया जीणॆ हो चुकी होती है। जीवन वीथि पर मोह अपने अंक में इस तरह जकडे रखती है कि हम ये जान नहीं पाते हमारा ध्येय क्या है।
सांसें हमें जिस राह खिंचती जाती है, हम खिंचते जाते हैं ।
चाह कभी शेष नहीं होती। शेष होती है तो जीवन की सांसें............
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
अगर हुआ भी, तब तक काया जीणॆ हो चुकी होती है। जीवन वीथि पर मोह अपने अंक में इस तरह जकडे रखती है कि हम ये जान नहीं पाते हमारा ध्येय क्या है।
सांसें हमें जिस राह खिंचती जाती है, हम खिंचते जाते हैं ।
चाह कभी शेष नहीं होती। शेष होती है तो जीवन की सांसें............
..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा
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M K Mishra