Wednesday, July 13, 2016

हम हकीकत जानते हैं.......

थक गये रिश्ते चलकर बहुत? उन्हें आराम दे दो
वासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है।

ख्वाहिशें जलती रहीं सुनसान दर पर इस तरह
न हम किसी के हो सके न कोई हमारा हुआ।

लड़ लिया खुद से बहुत अब और ना हो फासला
जीत कर ही खो दिया सब, हारने का क्या गिला।

साफगोई कभी ऐसी है कि हँस के भी रो देते हैं
किस्मत का खेल है कि पा कर सब खो देते हैं।

कभी बिखर के उग जाऊँ तो ना कहना स्वार्थी
जग के संभाला हैं आँखों में बीज एक मेहराव की।

हम हकीकत जानते हैं वृक्ष के फैलाव का
हौसले में लिपटी है बहती गति सैलाब की।

..........रचना © मनोज कुमार मिश्रा

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M K Mishra